Thursday 8 October 2015

दुकानें बन्द कर दो अब, दुआएँ बेचने वालों.....

                       (1)
दुकानें बन्द कर दो अब दुआएँ बेचने वालों
जमाना खुद बनायेगा मुकद्दर देख लेना तुम।

                       (2)
मुद्दतों बाद उसके हक् में फैसला आया
जिसके इंतज़ार मे साँसें ठहर गयी उसकी।

                       (3)
साकी ने दिया ज़ाम मगर बेरूखी के साथ
ऐसे में मैकशों को नशां खाक् चढ़ेगा।

                      (4)
गरीबों, के उजालों को छीनने वाला
तड़प-तड़प के अधेरों में मर गया आखिर।

                      (5)
परिंदा मार करके जीत का तुम जश्न करते हो
उनकी बद्दुआ से क्या तुम्हे कुछ डर नहीं लगता।

                      (6)
नजरें घड़ी पर, और बेचैनी से लगता है
कि महबूब ने मिलने का वादा कर लिया उससे।

    --------राजेश कुमार राय।-------

5 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'बुधवार' २६ फ़रवरी २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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    1. आप का हार्दिक आभार आदरणीय ।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ।

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