Wednesday 19 September 2018

बहुत हो चुका अब लगाओ निशाना ................

इलाका  तुम्हारा   बशर देखना है
कहाँ तक चला है असर देखना है

हुई जिन  परिंदों की परवाज़ ऐसी
हमें उन  परिंदों   के पर देखना  है

बहुत हो चुका अब लगाओ निशाना
मुझे अपने दुश्मन का डर देखना है

इशारा समझते हैं हम भी बहुत कुछ
हमें मत  बताओ  किधर देखना है

असल में सुहानी सी रातों में कैसे
कटेगा  ये तनहा  सफर देखना है

सजा दे जो गुलशन मिला दे जो सबको
मुहब्बत को अब इस कदर देखना है

लगी आज महफिल चटक चांदनी में
नजारा  हमें  रात भर देखना है

हजारों गमों में भी लब मुसकुराते
गजब का जिगर है जिगर देखना है

     ------राजेश कुमार राय------   

Tuesday 29 May 2018

फिर हमें आवाज़ देकर क्यूं पुकारा ये बता दे ........

कौन होगा इस दफा अपना तुम्हारा ये बता दे
टूट कर भी क्यूं तना है इक सितारा ये बता दे

जान कर हैरान हूँ मैं इस चमन की दासतां को
किसने लूटा किसने रौंदा किससे हारा ये बता दे

जब तुम्हारी ज़िंदगी से हम निकल कर चल दिए तो
फिर हमें आवाज़ देकर क्यूं पुकारा ये बता दे

शाम ढलने में अभी कुछ वक्त बाकी रह गया है
इस सफीने को मिलेगा कब किनारा ये बता दे

डूबने वालों को जब तुमको बचाना ही नहीं था
कश्तियाँ फिर क्यूं समंदर में उतारा ये बता दे

तुमने रिश्तों की सियासत में हमें उलझा दिया है
इस तिज़ारत में हुआ कितना ख़सारा ये बता दे

हादसों को रोकने का तुमने वादा भी किया था
हादसा तब क्यों हुआ फिर से दुबारा ये बता दे

        ---------राजेश कुमार राय---------

Tuesday 16 January 2018

कि कैसे इक समंदर एक सूरज को निगलता है ........

तुम्हारे दौर का क़ातिल बहुत हुशियार लगता है
हमेशा खून करके फिर जनाजे में भी चलता है

बहुत रफ़्तार में चलना मुनासिब है नहीं यारों
करारी चोट लगने पर कहाँ कोई सम्हलता है

कि उसका हौसला भगवान भी महफूज रक्खेगा
हवा की इस  चुनौती में  दिया हर रोज जलता है

नज़ारा देखते हैं दूर से सब लोग आ कर के
कि कैसे इक समंदर एक सूरज को निगलता है

जमाने ने उसे इतना सताया देख ले दुनियाँ
हजारों दर्द लेकर वो अकेले  में निकलता है

बरसती है जो रहमत आसमां से उपर वाले की
कहीं पर द़िल पिघलता है कहीं पत्थर पिघलता है

हुई जब शाम शम्मा जल गयी अब देख लो मंज़र
हजारों आशिकों का कारवाँ उस पर मचलता है

                ------- राजेश कुमार राय--------