(1)
कुछ बेबसी थी ऐसी तारीफ़ कर रहा था
वरना इसी चराग़ ने सब कुछ जला दिया।
(2)
झूठ के शहर में, अफवाह गर्म है
साकी भी बिक गयी है मेंरे मैकद़े के साथ।
(3)
अव्वल रहीं है बेटियाँ उस इम्तेहान में
जहाँ से मुल्क के सबसे बड़े हाक़िम निकलते है।
(4)
अब्र के टुकड़ों पे भरोसा करके
आ फसलों को सूरज के हवाले कर दें।
(5)
तुम जा रहे हो? ठीक है! मेरी याददाश्त भी लेते जाओ,
तेरी यादों के पुलिन्दे मुझे हँसनें नहीं देगें।
(6)
वो जिस जगह जाता है बस इक आग सी लगती है
बारूद से उसका कोई रिश्ता पुराना है।
(7)
एक तश्वीर बनाता रहा मैं सारी जिंदगी
ये सोचकर कि शायद इसमें जान आ जाये।
--------राजेश कुमार राय।--------