(1)
इंसान हूँ मगर मैं मुकम्मल न हो सका
शायद मेरे रक़ीब की कुछ बद्दुआ भी है।
(2)
दिन भर हराम कहता रहा मैंकशी को वो
शाम जब ढली तो मैकद़े पहुँच गया।
(3)
तेरा एहसान मुझ पर है इसे मैं भी समझता हूँ
मगर सबको बताकर तुमनें हल्का कर दिया इसको।
(4)
ज़िंदगी माँगकर ख़ुदा से क्या किया तुमनें !
ग़मे-हयात तुम्हे फिर से मार डालेगा।
(5)
जुगनूँ ने कहा चाँद से ललकार कर, मुझमें
रौशनी तो बहुत कम है, पर उधार की नहीं।
(6)
परिन्दा जब तलक उसका निवाला बन नहीं जाता
कोई मेहफ़िल मसर्रत की कभी पूरी नहीं होती।
(7)
इंतज़ार है तेरा, तू मेरे बज़्म में आकर
मेरे ऐतबार की ऐ दोस्त आबरू रख ले।
-----------राजेश कुमार राय।----------
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