तेरी बद्दुआ भी द़िल से लगाऊँगा देखना
शाम ढ़ले घर तेरे आऊँगा देखना।
बेटी है मेरी, खून है, और लख़्ते-ज़िगर भी
उसके लिये हर बोझ उठाऊँगा देखना।
टूटने का वहम् पाल के बैठे हैं ये रक़ीब
मर जाऊँगा पर सर न झुकाऊँगा देखना।
तन्हा हुआ तो क्या हुआ ! इक मैकद़ा तो है
सारी दुआ साकी पे लुटाऊँगा देखना
तेरे लिये ऐ दोस्त जरूरी हुआ अगर
उस बेवफ़ा से हाथ मिलाऊँगा देखना।
हालांकि तेरी रूह मयस्सर न हो सकी
वादा किया था जो भी निभाऊँगा देखना।
दुश्मन है मेरा लाख, मगर वक्त पे "राजेश"
नशेमन मे लगी आग बुझाऊँगा देखना।
------राजेश कुमार राय।-------