किसी के नाम पर आँसू बहाना कब तलक होगा
नसों के खून को जिंदा जलाना कब तलक होगा।
बहुत आँसू बहाते हैं, तुम्हारी याद के मंज़र
तुम्हारी याद मे खुद को रूलाना कब तलक होगा।
उन्हें कुछ मांगना है तो हुकूमत से ही मांगे वो
बता मासूम ही उनका निशाना कब तलक होगा।
किसी के दर्द मे फिर दर्द देकर क्या किया तुमने
कि ऐसे हौसलों को आजमाना कब तलक होगा।
कभी मुस्कान देते हो कभी तुम छीन लेते हो
कभी ऊँचा उठाना फिर गिराना कब तलक होगा।
सितारे पूछते हैं आसमाँ से ऐ जम़ी वालों
किसी का पर कतरना फिर उड़ाना कब तलक होगा।
गुनाहों की सजा ऐसी मुकर्रर कर मेरे मौला
खुली दुनियाँ दरिंदों का ठिकाना कब तलक होगा।
--------राजेश कुमार राय।-------
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