मेरी वफा को छोड़ो अपनीं वफा को देखो
उसनें कहा था यही चलते-चलते।
क्या ज़वाब देता उस आख़िरी मिलन में
खामोंश रह गया था मैं हाथ मलते-मलते।
ऐसा मुझे लगा था मैं हो गया हूँ खाली
थोड़ा सा बस बचा था एहसास मरते-मरते।
मुख्तसर सी ज़िन्दगी को फिर से शुरू करो तुम
पैगाम ये दिया था सूरज नें ढ़लते-ढ़लते।
सब ठीक चल रहा था न जानें क्यूँ अचानक
महफ़िल में बुझ गयी थी एक शँम्मा जलते-जलते।
मेरी कोशिश यही थी न कुछ हो मगर
हादसा हो गया, हादसा टलते-टलते।
वो मेंरा नहीं था मगर मेंरे यारों
एक रिश्ता जवाँ हो गया पलते-पलते।
मुसव्विर हूँ छोटा तसव्वुर बड़ा है
इल्तज़ा है मरूँ तो ग़ज़ल कहते-कहते।
........राजेश कुमार राय.........
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