(1)
खेलो जितना खेल सको, बस नाजुक आँख बचा करके
ये होली मिलन की बेला है, कोई चूक कहीं ना हो जाये।
(2)
फागुन के नँशीले झोंकों में, और फिजाँ में चारो तरफ
बस पायल की झँनकारों का संगीत सुनायी देता है।
(3)
मौसम की खुमारी में प्यारे थोड़ा और नशा चढ़ जाने दे
तब दीवानी चुनरी में हम सातों रंग लगायेंगें।
(4)
पूछता हूँ हाल तो इतराते हैं ज़नाब
हाले-दिल बेकार है फागुन में पूछना।
(5)
तज़ल्ली है रूक्सार पे, चूड़ी है खँनकती
लगता है कि परदेश से दीवाना आ गया।
(6)
इस रंगे-सुखन के मौसम में चल सारी अदावत भूलें हम
क्या जानें कल हम न रहें या क्या जानें कल तुम न रहो।
..............राजेश कुमार राय.............
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