Saturday, 25 March 2017

वही क़ातिल का खंज़र धो रहा है --------

आँखों   में नशेमन   ढ़ो    रहा है
किसी की याद में बस  रो रहा है

आँचल माँ का फिर से पा गया है
कई दिन से मुसलसल सो रहा है

हमेशा ज़ुल्म  से   लड़ता रहा जो
वही क़ातिल का खंज़र धो रहा है

बदलते   दौर में इंसाँ की फितरत
मसल कर   फूल काँटे  बो रहा है

बहुत दिन बाद बेटी घर को आयी
खुशी  से   बाप पागल   हो रहा है

उसी को   याद करती   है रियाया
ज़माने     का दुलारा    जो रहा है

माज़ी   का द़रीचा    खोल कर के
कोई ". राजेश" उसमें   खो रहा है

   --------राजेश कुमार राय।--------

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