सौ दर्द भरे अफसानों में इक मेरा भी अफसाना है
इक तेरे तबस्सुम की ख़ातिर मुझे गीत वफा के गाना है
कुछ कर्म हमारे हाथों में कुछ है तेरी मंजूरी भी
दस्तूर यही इस दुनियां का कुछ खोना है कुछ पाना है
तू ही तो सब कुछ है पर तसक़ीम समझना है मुश्किल
कुछ को मिला सिफर हाथों में कुछ को मिला ख़जाना है
इमदाद मुझे ईमानों की कुछ और जरा दे दे साक़ी
मैं रिन्द हुँ तेरी आंखों का उस पार मुझे भी जाना है
जब जन्म लिया इस धरती पर हक मेरा भी तसलीम करो
जिन कन्धों पर यह देश टिका उसमें मेरा भी शाना है
वादा करना कायम रहना इतना तो आसान नहीं था
तुम एक जनम में ऊब गये मुझे सातों जनम निभाना है
बस इक जरा सी हरकत से ही प्यार तुम्हारा टूट गया
अब वक्त कहाँ है हाथों में बस जीवन भर पछताना है
---------राजेश कुमार राय---------
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