Sunday, 1 December 2024

मृत्यु अटल है जाना होगा ...........

मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 

खुद से कोई ऊब गया है 
दरिया में ही डूब गया है 
कोई लड़कर चला गया है 
अपनों से ही छला गया है 
रहते हैं पर रहना क्या है 
बात खरी पर कहना क्या है 
इस दुनियां से रुखसत का भी 
कोई एक बहाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा ।

सच पूछो तो बात सही है 
जीवन भर संघर्ष यही है 
आज ठहरना कल फिर चलना 
धीरे धीरे रोज़ बदलना 
खत्म हुआ ये समर नहीं है 
ये दुनियां भी अमर नहीं है 
आया है सो जायेगा भी 
खुद को ये समझाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा ।

साथ सभी के चलना होगा 
हर सांचे में ढलना होगा 
सन्यासी संग चोर मिलेंगे 
और तिमिर घनघोर मिलेंगे 
कुछ सुनना कुछ सहना होगा 
साथ उन्हीं के रहना होगा 
जब दुनियां में आए हो तो 
सबका साथ निभाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा ।

कोई किसी का गैर नहीं है 
कांटों से भी बैर नहीं है 
सागर की लहरों को देखो 
गूंगों औ बहरों को देखो 
सबको एक नज़र से देखो 
और नज़र भर भर के देखो
अगर चैन से जाना है तो 
गीत वफा के गाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा ।

सबको साथ मिला रखने को 
गुलशन फूल खिला रखने को 
कुछ अच्छा करते रहना है 
भावों में बहते रहना है 
भाग्य तुम्हारे हाथ रहा तो 
सद्गुण तेरे साथ रहा तो 
जब दुनियां से जाओगे तो 
पत्थर भी दीवाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा ।

रुह गई पर नाम अमर है 
देह जली पर काम अमर है 
बना बनाया रह जाएगा 
सारा आंसू बह जाएगा 
अगर चाहते याद रहो तुम 
उस दुनियां में शाद रहो तुम 
सत्य, न्याय के साथ वफ़ा का 
कुछ तो नाज़ उठाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा ।

मैकश डूबा साकी के दर 
सूरज डूबा मगरिब के घर 
हम भी फ़ानी तुम भी फ़ानी 
फिर भी जीवन भर नादानी 
कोई दीपक आज जलेगा 
उस पर गिरकर स्वयं मरेगा 
शाम हुई है शमां जली है 
कोई तो परवाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा ।

राज किसी का कहां रहा है 
आज कहां है जहां रहा है 
संत हमेशा खुश रहता है 
गंगा सा अविरल बहता है 
हर दिन हर पल क्यूं रोते हो 
सुंदर जीवन क्यूं खोते हो 
मरघट- मरघट जाकर देखो 
अंतिम यही ठिकाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 
मृत्यु अटल है जाना होगा 

......... राजेश कुमार राय ...........

Saturday, 15 June 2024

ज़िंदान से निकल कर शातिर शहर में आया .........

ज़िंदान से निकल कर शातिर शहर में आया
मासूम सा तबस्सुम भरपूर है सजाया

इतना बड़ा मदारी देखा कभी किसी ने
बे-कैद़ होने ख़ातिर क्या क्या नहीं वो खाया

भारी पड़ेगी तुम को थोड़ी सी भी मुरव्वत
बंदर का खेल उसने सबको बहुत दिखाया

वापस मकां को जाये इतना ख़याल रखना
सब कुछ वसूल लेना कुछ भी न हो बकाया

   ---------- राजेश कुमार राय---------

Sunday, 5 May 2024

अब तेरे पैकर के क़सीदे न पढ़ूंगा..........

सूरज को बुझाने में इस बात का डर है
के उसका तहम्मुल कहीं बरबाद न कर दे

अरसे से क़फ़स में हूं पर सूख गये हैं
डरता हूं सैय्याद़ भी आज़ाद न कर दे

अब तेरे पैकर के क़सीदे न पढ़ूंगा
द़िल मेरा मरासिम कोई ईज़ाद न कर दे

फुरक़त में मुश्ताक़ ने सब छोड़ दिया है
ये दौर उसे नाम से फरहाद न कर दे

   ----------राजेश कुमार राय---------

Wednesday, 24 August 2022

माना तुमको न्याय मिलेगा................

साकी तेरा काम बहुत है
फिर भी तू बदनाम बहुत है 

तेरे हाथों मिलने वाला 
एक ही प्याला ज़ाम बहुत है

माना तुमको न्याय मिलेगा 
फिर भी इसमें झाम बहुत है 

तेरे साथ गुजरने वाली 
सच पूछो इक शाम बहुत है

खेल नहीं है उससे मिलना 
उसका अपना दाम बहुत है 

काम बड़ा यदि करना है तो
छोटा सा पैग़ाम बहुत है

तुम हो मुनव्वर मान लिया पर 
वो भी तो गुलफ़ाम बहुत है

-------राजेश कुमार राय--------
  -------राजेश कुमार राय--------

Wednesday, 6 October 2021

रफ़्ता रफ़्ता आंचों पर ये शह्र उबाला जाएगा.............

खाली कर दे पैमाना पैमाना ढाला जाएगा 
वक़्ते रूखसत जितना होगा उतना टाला जाएगा 

अपने मकां के सरमाये को अपने मकां तक रहने दो 
वरना इक दिन चौराहों पर उसको उछाला जाएगा 

दुनियाँ के अच्छे शेरों के शौक लगेंगे जब तुम को 
मीरो ग़ालिब मोमिन का दीवान खँगाला जाएगा 

कैसी उसकी माया है और कैसा उसका खेल बता 
तेरे मेरे ज़िस्म से इक दिन प्रांण निकाला जाएगा 

अपने रफ़ीकों में काफिर से अपनी जान बचा लेना 
सांप तुम्हारी खातिर उनके घर में पाला जाएगा 

मसनद पर इल्ज़ाम लगाकर और उतर कर सड़कों पर 
रफ़्ता रफ़्ता आंचों पर ये शह्र उबाला जाएगा 

                  --------राजेश कुमार राय---------

Saturday, 9 January 2021

कभी रेगज़ारों से पूछो कि उनके..........

मुकम्मल हुई ना अधूरी कहानी 
नहीं जिंदगी में रही रात रानी 

मुझे तोड़ देने की कोशिश में प्यारे 
कहीं टूट जाये ना तेरी जवानी 

किसे ये पता था कि आयेगा इक दिन 
समंदर भी मांगेगा बादल से पानी 

तुम्हारे पते पर तुम्हें भेज दूंगा 
मुहब्बत में छूटी थी जो इक निशानी 

जहां से चले थे वहीं आ गये हम 
वही मैकद़ा है वही ज़िंदगानी 

ये ज़ुल्फों का उड़ना बहकती अदाएं
भला कैसे होगा न मौसम रूमानी 

कभी रेगज़ारों से पूछो कि उनके 
तसव्वुर में क्या है समंदर के मानी

  --------राजेश कुमार राय---------

Wednesday, 1 April 2020

अभी हरगिज न सौपेंगे सफ़ीना----------

ये गुलशन घर में ही अपने सजा ले
घरों में कैद रहने का मज़ा ले

नयी दुनियाँ बनाना बाद में तुम 
जो दुनियाँ है बची उसको बचा ले 

बला आयी है तो जाना भी होगा 
अभी चाहे हमें जितना नचा ले 

अभी हरगिज न सौंपेंगे सफीना 
समंदर शोर कितना भी मचा ले

मुसीबत की उमर लम्बी न होगी 
अगर ये पैर घर में ही जमा ले 

हिफाजत खुद की करने के लिए ही 
हकीमों की सलाहों को कमा ले

खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर 
अमा इक चैन की बंशी बजा ले 

    -------राजेश कुमार राय---------


Thursday, 9 January 2020

शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी---------------

माज़ी की इक याद है अकसर खुशियों से नहलाती है
मेरे सारे ज़ख्मों को वह सपनों से धो जाती है ।

शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी
शब्दों की वो प्यास अभी भी रग रग को तड़पाती है ।

किसमत की कमजोरी है या नाविक ही कमजोर हूँ मैं
लोग गुजरते जाते हैं बस नाव मेरी टकराती है ।

सूरज ढलने वाला है इक दीप जला दो चौखट पर
गोधुलि बेला होने पर ये शाम बहुत शरमाती है ।

          ---------राजेश कुमार राय---------

Saturday, 21 September 2019

लौट चलो ऐ शह्र के लोगों-------------

सावन भादों बीत रहा है असमंजस के भावों में
लौट चलो ऐ शह्र के लोगों अपने अपने गांवों में

जिन पेड़ों को काट रहे हो उसने तुम को पाला है
सारा बचपन तुमने बिताया उन पेड़ों की छावों में

           --------राजेश कुमार राय---------

Wednesday, 19 September 2018

बहुत हो चुका अब लगाओ निशाना ................

इलाका  तुम्हारा   बशर देखना है
कहाँ तक चला है असर देखना है

हुई जिन  परिंदों की परवाज़ ऐसी
हमें उन  परिंदों   के पर देखना  है

बहुत हो चुका अब लगाओ निशाना
मुझे अपने दुश्मन का डर देखना है

इशारा समझते हैं हम भी बहुत कुछ
हमें मत  बताओ  किधर देखना है

असल में सुहानी सी रातों में कैसे
कटेगा  ये तनहा  सफर देखना है

सजा दे जो गुलशन मिला दे जो सबको
मुहब्बत को अब इस कदर देखना है

लगी आज महफिल चटक चांदनी में
नजारा  हमें  रात भर देखना है

हजारों गमों में भी लब मुसकुराते
गजब का जिगर है जिगर देखना है

     ------राजेश कुमार राय------   

Tuesday, 29 May 2018

फिर हमें आवाज़ देकर क्यूं पुकारा ये बता दे ........

कौन होगा इस दफा अपना तुम्हारा ये बता दे
टूट कर भी क्यूं तना है इक सितारा ये बता दे

जान कर हैरान हूँ मैं इस चमन की दासतां को
किसने लूटा किसने रौंदा किससे हारा ये बता दे

जब तुम्हारी ज़िंदगी से हम निकल कर चल दिए तो
फिर हमें आवाज़ देकर क्यूं पुकारा ये बता दे

शाम ढलने में अभी कुछ वक्त बाकी रह गया है
इस सफीने को मिलेगा कब किनारा ये बता दे

डूबने वालों को जब तुमको बचाना ही नहीं था
कश्तियाँ फिर क्यूं समंदर में उतारा ये बता दे

तुमने रिश्तों की सियासत में हमें उलझा दिया है
इस तिज़ारत में हुआ कितना ख़सारा ये बता दे

हादसों को रोकने का तुमने वादा भी किया था
हादसा तब क्यों हुआ फिर से दुबारा ये बता दे

        ---------राजेश कुमार राय---------

Tuesday, 16 January 2018

कि कैसे इक समंदर एक सूरज को निगलता है ........

तुम्हारे दौर का क़ातिल बहुत हुशियार लगता है
हमेशा खून करके फिर जनाजे में भी चलता है

बहुत रफ़्तार में चलना मुनासिब है नहीं यारों
करारी चोट लगने पर कहाँ कोई सम्हलता है

कि उसका हौसला भगवान भी महफूज रक्खेगा
हवा की इस  चुनौती में  दिया हर रोज जलता है

नज़ारा देखते हैं दूर से सब लोग आ कर के
कि कैसे इक समंदर एक सूरज को निगलता है

जमाने ने उसे इतना सताया देख ले दुनियाँ
हजारों दर्द लेकर वो अकेले  में निकलता है

बरसती है जो रहमत आसमां से उपर वाले की
कहीं पर द़िल पिघलता है कहीं पत्थर पिघलता है

हुई जब शाम शम्मा जल गयी अब देख लो मंज़र
हजारों आशिकों का कारवाँ उस पर मचलता है

                ------- राजेश कुमार राय--------

Friday, 15 December 2017

एक जनाजा निकला है बिन मौसम का .........

किसने लूटा घर मेरा  तनहाई में
अब किसका है हांथ मेरी रूसवाई में

बरसों पहले जख्म दिया तूने मुझको
दर्द उठा है आज वही पुरवाई में

मुंसिफ की हर बात मेरी सर आंखों पर
जाने दो अब क्या रक्खा सुनवाई में

एक जनाजा निकला है बिन मौसम का
सरहद पर जब जान गयी तरूणाई में 

उसकी बेबस आंखों का पानी देखो
सारा दोष निकालो मत हरजाई में

गौहर खातिर आंख ही उसकी काफी है
मत डूबो तुम सागर की गहराई में

खंजर तेरा और मेरे सर का सजदा
टूट गया हूँ पल पल तेरी लड़ाई में

   ---------राजेश कुमार राय---------