Wednesday, 21 June 2017

मेरी रूह तड़पती है मुकद्दर के शहर में ------------

प्यार भी  दुश्वार है  दुनियाँ की  नजर में
साहिल पे बहुत शोर है चल बीच भंवर में

इक शख़्स अपनी हार से इतना ख़फा हुआ
कहता है  जहर और दे  कश्कोले-जहर में

सोचता था तेरे नाम का एक शेर लिखूंगा
आज तक उलझा रहा ग़ज़लों के बहर में

लौट के आना था सो मैं आ गया मगर
मेरी रूह तड़पती है मुकद्दर के शहर में

हम सब को लूट कर वो विलायत चला गया
अक़्सर दिखाई देता है दुनियां की ख़बर में

पत्थर चलाये  जा रहे एक दूसरे पे सब
सूझता है कुछ नहीं जुल्मत के कहर में

मुतमइन हूँ बादशाह के हर फैसले से मैं
एक उम्मीद दिख रही है पैगामे-शजर में

       ----------राजेश कुमार राय---------

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