तन्हाई और मैं दोनों एक ही मन
तन्हाई और मैं दोनों एक बदन
रहना कठिन एक दूजे के बिन
तन्हाई नें मुझसे कहा एक दिन
तन्हाई और मैं दोनों एक बदन
रहना कठिन एक दूजे के बिन
तन्हाई नें मुझसे कहा एक दिन
तन्हाई से नफ़रत मत करना
तन्हाई को तुम ज़िन्दा रखना
तन्हाई को तुम द़िल में रखना
तन्हाई को तन्हा मत करना।
ग़म को भुलानें की ख़ातिर दुनियाँ मैख़ानें जाती है
प्याला पीकर ग़म की कहानी औरों को वह सुनाती है
ग़म का बँटवारा करके जब महफ़िल घर को आती है
तब ऐ ग़म के नादानों तन्हाई ही साथ निभाती है
देख हमारी दीन-दशा तन्हाई यही फ़रमाती है
तन्हाई से नफरत मत करना
तन्हाई को तुम ज़िन्दा रखना........
सड़कें तन्हा रहतीं हैं महफ़िल भी तन्हा हो जाती
चिड़िया दाना चुग करके जब लौट नशेमन को जाती
और फ़कीरों की दुनियाँ जब अपनें धुन में खो जाती
रात के इस अँधियारे में जब दुनियाँ सारी सो जाती
तब मुझे अकेले पा करके तन्हाई मुझसे कहती है
तन्हाई से नफ़रत मत करना
तन्हाई को तुम ज़िन्दा रखना.......
तन्हा-तन्हा शाम को जब मैं घर के अन्दर आता हूँ
माचिस लेकर दीपक पर मैं शमाँ ज़लानें जाता हूँ
दीपक हँसकर कहता है तन्हाई दूर भगाता हूँ
ऐसा लगता तन्हाई से रिश्ता टूटा जाता है
ज़ोर-ज़ोर से तन्हाई, तन्हाई मैं चिल्लाता हूँ
आशिक ठहरा उसका मैं माशूक मेरी तन्हाई है
गले लगाकर सारी रात मैं उसका ही गीत सुनाता हूँ
तन्हाई से नफ़रत मत करना
तन्हाई को तुम ज़िन्दा रखना.......
कुछ दिन तन्हाई में मैं द़रिया के किनारे जाता था
दरिया के लहरों, साहिल को सहमा-सहमा पाता था
झुंड उसी पर चढ़ करके साहिल से साहिल आता था
सूरज का परिवार समन्दर में जब डुबकी लगाता था
चाँद, सितारों से मिलकर जब महफ़िल खूब सज़ाता था
जैसे-जैसे मरघट सा सन्नाटा छाता जाता था
वैसे-वैसे अन्दर से एक राग़ उभरता जाता था
तन्हाई से नफ़रत मत करना
तन्हाई को तुम ज़िन्दा रखना.......
मंदिर की ख़ामोशी में भी देख वही तन्हाई है
मस्ज़िद में जब-जब नमाज़ हो तब भी एक तन्नहाई है
गिरज़ाघर, गुरूद्वारों की दीवारों में तन्हाई है
जिधर नज़र पड़ती है मेरी वहीं-वहीं तन्हाई है
जीवन भर तुम किसी भाँति यदि तन्हाई से दूर रहे
तो कब्र के अन्दर भी तन्हा और मरघट पर तन्हाई है
जहाँ-जहाँ पर गया वहाँ पर तन्हाई को पाता हूँ
एक बार फिर पुनः यहाँ संगीत वही दुहराता हूँ
तन्हाई से नफ़रत मत करना
तन्हाई को तुम ज़िन्दा रखना
तन्हाई को तुम दिल में रखना
तन्हाई को तन्हा मत करना।
......राजेश कुमार राय.......
Kabiletarif hai.
ReplyDeleteग़म को भुलानें की ख़ातिर दुनियाँ मैख़ानें जाती है
ReplyDeleteप्याला पीकर ग़म की कहानी औरों को वह सुनाती है
ग़म का बँटवारा करके जब महफ़िल घर को आती है
तब ऐ ग़म के नादानों तन्हाई ही साथ निभाती है
देख हमारी दीन-दशा तन्हाई यही फ़रमाती है
तन्हाई से नफरत मत करना
तन्हाई को तुम ज़िन्दा रखना.....
सार्थक शब्द राजेश जी
बहुत-बहुत शुक्रिया योगी जी।
DeleteKay khoobsoorat baat hai ....wah wah
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
DeleteKay khoobsoorat baat hai ....wah wah
ReplyDeleteवाह! तन्हाई और इंसा का रिश्ता लाजवाब..
ReplyDeleteशुक्रिया शिल्पा जी।
Deleteसारगर्भित रचना।
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