(1)
समन्दर की प्यास देखकर मुझको यही लगा
जैसे किसी अमीर की दस्तार बिक गयी।
(2)
सारा शहर दहशत की गुँजलक में कैद है
अफवाह हैं कि, ज़श्न मनाते नहीं थकते।
(3)
इस दौर में माली ही शज़र काट रहे हैं
ऐसे में दरख्तों की सद़ा कौन सुनेंगा।
(4)
तीर खा के परिन्दे नें शिकारी से ये कहा
मैं तो मर जाऊँगा, तू भूख मिटा ले अपनी।
(5)
शज़र,साँसों की खुराकें दे के भी खामोंश रहते हैं
हम कुछ नहीं देकर भी कितना शोर करते हैं।
(6)
वो मिलता है सबसे बड़े सलीके से
ऐसी तहज़ीब उसकी माँ नें सँवारा होगा।
(7)
बड़े अरमान से चिड़ियों नें बनाया था घोसला
मगर तूफान की रफ्तार नें बर्बाद कर दिया।
(8)
दग़ाबाजी, बेवफ़ाई, मक्कारी सब कुछ तो कर लिया
अब चलो थोड़ी सी वफादारी सीख लें।
(9)
ज़िन्दगी का कहा मान के म़क्तल चला गया
मुस्कुरा के कहा मौंत नें कि तुमको शुक्रिया।
........राजेश कुमार राय.......
कल 21/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
मेरी रचना को स्थान देनें के लिये आप को बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
कभी फुर्सत मिले तो ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
बहुत ही लाजवाब शेर ... कुछ हकीकत जमाने की बयान करते हुए ...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (24-01-2015) को "लगता है बसन्त आया है" (चर्चा-1868) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को स्थान देनें के लिये आप को बहुत-बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।बसन्तपञ्चमी की आप को भी ढ़ेरों शुभकामनायें।
Deleteवाह क्या बात है! बढ़िया ...
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