फिर भी तू बदनाम बहुत है
तेरे हाथों मिलने वाला
एक ही प्याला ज़ाम बहुत है
माना तुमको न्याय मिलेगा
फिर भी इसमें झाम बहुत है
तेरे साथ गुजरने वाली
सच पूछो इक शाम बहुत है
खेल नहीं है उससे मिलना
उसका अपना दाम बहुत है
काम बड़ा यदि करना है तो
छोटा सा पैग़ाम बहुत है
तुम हो मुनव्वर मान लिया पर
वो भी तो गुलफ़ाम बहुत है
-------राजेश कुमार राय--------
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०८ -२०२२ ) को 'भूख'(चर्चा अंक -४५३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
तेरे साथ गुजरने वाली
ReplyDeleteसच पूछो इक शाम बहुत है
वाह!!!
तुम हो मुनव्वर मान लिया पर
वो भी तो गुलफ़ाम बहुत है
बहुत ही लाजवाब।
🙏🙏
साकी तेरा काम बहुत है,,,,,,,, बहुत सुंदर ग़ज़ल ।
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