Saturday 4 July 2015

सैय्याद भी फँसेगा किसी जाल में एक दिन----

हाथों से अपनें ज़ाम पिलाकर तो जरा देख
फूल कोई द़िल में खिलाकर तो जरा देख।

बेटियाँ भी दर्द तेरा दूर करेगीं
प्यार से दामन में बिठाकर तो जरा देख।

हौसला कितना है अभी शेष ज़िगर में
तूफान में में कश्ती को नचाकर तो जरा देख।

आईना भी सहम जायेगा ज़ानिब तेरे आकर
ठीक से नज़रों को मिलाकर तो जरा देख।

कामयाबियों के दिन भी आयेगें तेरे घर
पलकों पे कोई ख्वाब सजाकर तो जरा देख।

चाँद भी बेताब है दीदार की ख़ातिर
घूँघट को चेहरे से उठाकर तो जरा देख।

सैय्याद भी फँसेगा किसी जाल में एक दिन
"राजेश" अपना जाल बिछाकर तो जरा देख।

-------------राजेश कुमार राय।--------------