Wednesday 1 April 2020

अभी हरगिज न सौपेंगे सफ़ीना----------

ये गुलशन घर में ही अपने सजा ले
घरों में कैद रहने का मज़ा ले

नयी दुनियाँ बनाना बाद में तुम 
जो दुनियाँ है बची उसको बचा ले 

बला आयी है तो जाना भी होगा 
अभी चाहे हमें जितना नचा ले 

अभी हरगिज न सौंपेंगे सफीना 
समंदर शोर कितना भी मचा ले

मुसीबत की उमर लम्बी न होगी 
अगर ये पैर घर में ही जमा ले 

हिफाजत खुद की करने के लिए ही 
हकीमों की सलाहों को कमा ले

खुद़ा के वासते तनहा ही रह कर 
अमा इक चैन की बंशी बजा ले 

    -------राजेश कुमार राय---------


Thursday 9 January 2020

शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी---------------

माज़ी की इक याद है अकसर खुशियों से नहलाती है
मेरे सारे ज़ख्मों को वह सपनों से धो जाती है ।

शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी
शब्दों की वो प्यास अभी भी रग रग को तड़पाती है ।

किसमत की कमजोरी है या नाविक ही कमजोर हूँ मैं
लोग गुजरते जाते हैं बस नाव मेरी टकराती है ।

सूरज ढलने वाला है इक दीप जला दो चौखट पर
गोधुलि बेला होने पर ये शाम बहुत शरमाती है ।

          ---------राजेश कुमार राय---------