Thursday, 9 January 2020

शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी---------------

माज़ी की इक याद है अकसर खुशियों से नहलाती है
मेरे सारे ज़ख्मों को वह सपनों से धो जाती है ।

शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी
शब्दों की वो प्यास अभी भी रग रग को तड़पाती है ।

किसमत की कमजोरी है या नाविक ही कमजोर हूँ मैं
लोग गुजरते जाते हैं बस नाव मेरी टकराती है ।

सूरज ढलने वाला है इक दीप जला दो चौखट पर
गोधुलि बेला होने पर ये शाम बहुत शरमाती है ।

          ---------राजेश कुमार राय---------

6 comments:

  1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया ।

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  2. शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी...

    बहुत खूबसूरत रचना

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    1. आप का हार्दिक आभार ।

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  3. बहुत सुंदर बेहतरीन सृजन सर।
    सादर।

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    1. आप का हार्दिक आभार आदरणीया ।

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  4. किसमत की कमजोरी है या नाविक ही कमजोर हूँ मैं
    लोग गुजरते जाते हैं बस नाव मेरी टकराती है ।,,,,,,,,,, बहुत ही खूबसूरत लाईने बहुत सुंदर,।

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