Friday 23 January 2015

मग़रूर की महफ़िल में सब कुछ तो है मगर......

बीबी का कत्ल कर दिया पैसे के वास्ते
फिर भी वो कह रहा है गुनाहग़ार नहीं है।

मग़रूर की महफ़िल में सब कुछ तो है मगर
मौंसिकी का एक भी फ़नकार नहीं है।

जिस घर में बेटियाँ नहीं तो रूह भी नहीं
दौलत है, शोहरत है, झनकार नहीं है।

रिश्तों का नाम हमनें दिया जितनें भी उसमें
एक माँ के जैसा कोई भी किरदार नहीं है।

चन्द सिक्कों के लिये बेंच दे ईमाँ अपना
"राजेश" इस तरह का कलमकार नहीं है।

.........राजेश कुमार राय.........

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर; स्वागत है इन पंक्तिओं से

    कौड़ी के भाव बिक रहा ईमान देखिये
    बन्दों को ख़ुदा बनने का फ़रमान देखिये

    अज़ीज़ जौनपुरी

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  2. जिस घर में बेटियाँ नहीं तो रूह भी नहीं
    दौलत है, शोहरत है, झनकार नहीं है।

    बेहद उम्दा राजेश जी..

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  3. वाह ... सच है की माँ जैसा कोई नहीं दुनिया में ...

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  4. खूबसूरत अभिव्यक्ती .....

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  5. Really truth. Totay society bond to think it.
    nice delivery of emotions

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  6. adbhut.
    रिश्तों का नाम हमनें दिया जितनें भी उसमें
    एक माँ के जैसा कोई भी किरदार नहीं है।

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  7. जिस घर में बेटियाँ नहीं तो रूह भी नहीं
    दौलत है, शोहरत है, झनकार नहीं है।
    बेहद उम्दा राजेश जी

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  8. सुंदर प्रस्तुति.

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