Meri awaj
Saturday, 15 June 2024
ज़िंदान से निकल कर शातिर शहर में आया .........
Sunday, 5 May 2024
अब तेरे पैकर के क़सीदे न पढ़ूंगा..........
Wednesday, 24 August 2022
माना तुमको न्याय मिलेगा................
Wednesday, 6 October 2021
रफ़्ता रफ़्ता आंचों पर ये शह्र उबाला जाएगा.............
Saturday, 9 January 2021
कभी रेगज़ारों से पूछो कि उनके..........
Wednesday, 1 April 2020
अभी हरगिज न सौपेंगे सफ़ीना----------
Thursday, 9 January 2020
शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी---------------
माज़ी की इक याद है अकसर खुशियों से नहलाती है
मेरे सारे ज़ख्मों को वह सपनों से धो जाती है ।
शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी
शब्दों की वो प्यास अभी भी रग रग को तड़पाती है ।
किसमत की कमजोरी है या नाविक ही कमजोर हूँ मैं
लोग गुजरते जाते हैं बस नाव मेरी टकराती है ।
सूरज ढलने वाला है इक दीप जला दो चौखट पर
गोधुलि बेला होने पर ये शाम बहुत शरमाती है ।
---------राजेश कुमार राय---------
Saturday, 21 September 2019
लौट चलो ऐ शह्र के लोगों-------------
लौट चलो ऐ शह्र के लोगों अपने अपने गांवों में
जिन पेड़ों को काट रहे हो उसने तुम को पाला है
सारा बचपन तुमने बिताया उन पेड़ों की छावों में
--------राजेश कुमार राय---------
Wednesday, 19 September 2018
बहुत हो चुका अब लगाओ निशाना ................
इलाका तुम्हारा बशर देखना है
कहाँ तक चला है असर देखना है
हुई जिन परिंदों की परवाज़ ऐसी
हमें उन परिंदों के पर देखना है
बहुत हो चुका अब लगाओ निशाना
मुझे अपने दुश्मन का डर देखना है
इशारा समझते हैं हम भी बहुत कुछ
हमें मत बताओ किधर देखना है
असल में सुहानी सी रातों में कैसे
कटेगा ये तनहा सफर देखना है
सजा दे जो गुलशन मिला दे जो सबको
मुहब्बत को अब इस कदर देखना है
लगी आज महफिल चटक चांदनी में
नजारा हमें रात भर देखना है
हजारों गमों में भी लब मुसकुराते
गजब का जिगर है जिगर देखना है
------राजेश कुमार राय------
Tuesday, 29 May 2018
फिर हमें आवाज़ देकर क्यूं पुकारा ये बता दे ........
कौन होगा इस दफा अपना तुम्हारा ये बता दे
टूट कर भी क्यूं तना है इक सितारा ये बता दे
जान कर हैरान हूँ मैं इस चमन की दासतां को
किसने लूटा किसने रौंदा किससे हारा ये बता दे
जब तुम्हारी ज़िंदगी से हम निकल कर चल दिए तो
फिर हमें आवाज़ देकर क्यूं पुकारा ये बता दे
शाम ढलने में अभी कुछ वक्त बाकी रह गया है
इस सफीने को मिलेगा कब किनारा ये बता दे
डूबने वालों को जब तुमको बचाना ही नहीं था
कश्तियाँ फिर क्यूं समंदर में उतारा ये बता दे
तुमने रिश्तों की सियासत में हमें उलझा दिया है
इस तिज़ारत में हुआ कितना ख़सारा ये बता दे
हादसों को रोकने का तुमने वादा भी किया था
हादसा तब क्यों हुआ फिर से दुबारा ये बता दे
---------राजेश कुमार राय---------
Tuesday, 16 January 2018
कि कैसे इक समंदर एक सूरज को निगलता है ........
तुम्हारे दौर का क़ातिल बहुत हुशियार लगता है
हमेशा खून करके फिर जनाजे में भी चलता है
बहुत रफ़्तार में चलना मुनासिब है नहीं यारों
करारी चोट लगने पर कहाँ कोई सम्हलता है
कि उसका हौसला भगवान भी महफूज रक्खेगा
हवा की इस चुनौती में दिया हर रोज जलता है
नज़ारा देखते हैं दूर से सब लोग आ कर के
कि कैसे इक समंदर एक सूरज को निगलता है
जमाने ने उसे इतना सताया देख ले दुनियाँ
हजारों दर्द लेकर वो अकेले में निकलता है
बरसती है जो रहमत आसमां से उपर वाले की
कहीं पर द़िल पिघलता है कहीं पत्थर पिघलता है
हुई जब शाम शम्मा जल गयी अब देख लो मंज़र
हजारों आशिकों का कारवाँ उस पर मचलता है
Friday, 15 December 2017
एक जनाजा निकला है बिन मौसम का .........
किसने लूटा घर मेरा तनहाई में
अब किसका है हांथ मेरी रूसवाई में
बरसों पहले जख्म दिया तूने मुझको
दर्द उठा है आज वही पुरवाई में
मुंसिफ की हर बात मेरी सर आंखों पर
जाने दो अब क्या रक्खा सुनवाई में
एक जनाजा निकला है बिन मौसम का
सरहद पर जब जान गयी तरूणाई में
उसकी बेबस आंखों का पानी देखो
सारा दोष निकालो मत हरजाई में
गौहर खातिर आंख ही उसकी काफी है
मत डूबो तुम सागर की गहराई में
खंजर तेरा और मेरे सर का सजदा
टूट गया हूँ पल पल तेरी लड़ाई में
---------राजेश कुमार राय---------
Saturday, 23 September 2017
माँ की ममता भरी दोपहर में गयी --------------
धीरे धीरे दुल्हन अपने घर में गई
सोचते सोचते फिर पिहर में गई
आज सूरज ढलेगा तो देखेंगे हम
उसकी अस्मत कहाँ किस दहर में गई
जाने वाली हवा से ये पूछूंगा मैं
ये बता दे तू किसके असर में गई
बालपन में मुझे खोजते खोजते
माँ की ममता भरी दोपहर में गयी
पैर नूपुर सजा पेट के वासते
इक हसीना बता किस शहर में गई
सारे लोगों ने खोजा मगर ना मिला
उसको जाना था सच्ची नजर में गई
आसमां से चला कब तलक आयेगा
जिंदगी मुफलिसों की सबर में गई
उसकी किसमत बयाँ किस तरह मैं करूँ
जिसकी दुनियाँ ही ज़ेरे जबर में गई
--------राजेश कुमार राय---------