Saturday 15 June 2024

ज़िंदान से निकल कर शातिर शहर में आया .........

ज़िंदान से निकल कर शातिर शहर में आया
मासूम सा तबस्सुम भरपूर है सजाया

इतना बड़ा मदारी देखा कभी किसी ने
बे-कैद़ होने ख़ातिर क्या क्या नहीं वो खाया

भारी पड़ेगी तुम को थोड़ी सी भी मुरव्वत
बंदर का खेल उसने सबको बहुत दिखाया

वापस मकां को जाये इतना ख़याल रखना
सब कुछ वसूल लेना कुछ भी न हो बकाया

   ---------- राजेश कुमार राय---------

8 comments:

  1. बेहतरीन गज़ल सर। एक अरसे बाद आपको पढ़ना अच्छा लगा।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १८ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. आप का हार्दिक आभार आदरणीया।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।

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  3. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  4. बढ़िया गजल राजेश जी

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  5. आप का हार्दिक आभार आदरणीय।

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