शकुनी छल से आज लुभाने बैठा है
कोई युधिष्ठिर दाँव लगानें बैठा है।
सारी दुनियाँ बेंच दी बस ऐय्यासी में
अब बंदर का खेल दिखानें बैठा है।
पूरी मेहफ़िल लूट लिया जब चन्दा ने
तब जुगुनूँ भी बज़्म सजानें बैठा है।
राजा बनकर दर्द पियेगा जनता का
राज मिला तो ज़हर पिलानें बैठा है।
सारी बस्ती खाक् हुई तो क़ातिल भी
पानी लेकर आग बुझानें बैठा है।
एक दीवाना लगता है मर जायेगा
उल्फ़त में हर नाज़ उठानें बैठा है।
गद्दार पड़ोसी से थोड़ा होशियार रहो
धोखा देकर लाश बिछानें बैठा है।
हर बेटी नें ठान लिया कुछ करने की
"राजेश" खुशी से ग़ज़ल सुनानें बैठा है।
--------राजेश कुमार राय।---------
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